{न्यूज़ प्लस ब्यूरो – मंडी } देश में नई शिक्षा नीति लागू होने से निजी क्षेत्र में शिक्षा के व्यापारीकरण को बढ़ावा मिलेगा। इस पॉलिसी को लाकार केंद्र की मोदी सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे हटने का प्रयास कर रही हैं। यह आरोप नई शिक्षा नीति पर मंडी में आयोजित एक दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला के दौरान भारतीय स्कूल अध्यापक संघ के पूर्व सचिव वजीर सिंह ने लगाए है। मंडी में ज्ञान विज्ञान समिति के बैनर तले यह कार्यशाला आयोजित की गई।उन्होंने कहा कि सरकार शिक्षा पर पैसा खर्च नहीं करना चाहती हैं और नई शिक्षा नीति लाकर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति पाना चाहती है। उन्होने कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत सरकार नर्सरी से कक्षा 2 तक की पढ़ाई आंगनवाड़ी केंद्रों में करवाना चाहती हैं। जबकि देश की अधिकतर आंगनबाडी केंद्रों में मूलभूत सुविधाएं ही नहीं हैं। वजीर सिंह ने कहा कि इस पॉलिसी मेें बदलाव जरूरी है और केंद्रीय बजट का 10 प्रतिशत व जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च होना चाहिए। इसके साथ ही अध्यापकों की भर्ती स्वयंसेवक न होकर स्थायी तौर पर होनी चाहिए।वहीं इस मौके पर दिल्ली विश्वविद्यालय पूर्व अध्यक्ष डॉ अनिता रामपाल ने कहा कि नई शिक्षा नीति की खामियों को देखते हुए आज देश के कई राज्यों से इस पॉलिसी का नकार दिया है। इस नीति में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के खिलाफ बहुत सी चीजें परोसी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति को देश के अलग अलग राज्यों पर थोपने का प्रयास किया जा रहा है। जब तक केंद्र सरकार इस पॉलिसी में बदलाव नहीं करती है उनका संघर्ष जारी रहेगा।

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