शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) में इस सीजन का पहला स्क्रब टायफस का मामला सामने आया है। बुधवार को जांच के लिए भेजे गए आठ संदिग्ध नमूनों में से एक 32 वर्षीय महिला की रिपोर्ट पॉजिटिव पाई गई है। रिकॉर्ड के अनुसार, हिमाचल में दो साल पहले स्क्रब टायफस 973 मामले सामने आए थे। कुछ लोगों की इस बीमारी से मौत भी हुई थी। IGMC के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. राहुल रॉय ने बताया कि मरीज की हालत स्थिर है और उसे डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है। आवश्यक दवाएं दी जा रही हैं। उन्होंने लोगों को बारिश के मौसम में विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी है। डॉक्टरों के अनुसार, स्क्रब टायफस एक गैर-संक्रामक रोग है और साफ-सफाई से इसकी रोकथाम संभव है। साथ ही, आई-फ्लू से बचाव के लिए हाथ और मुंह की विशेष सफाई रखने की सलाह दी गई है। क्या है स्क्रब टायफस? स्क्रब टायफस एक बैक्टीरिया जनित रोग है, जो रिकिटेशिया नामक जीवाणु से संक्रमित पिस्सुओं के काटने से फैलता है। ये पिस्सू मुख्यतः खेतों, झाड़ियों और घास-फूस में पाए जाने वाले चूहों से मनुष्यों में आते हैं। बचाव के उपाय: बरते ये सावधानी जानें स्क्रब टाइफस कौन सी बीमारी है? स्क्रब टाइफस नाम की बीमारी ओरिएंटिया त्सुत्सुगामुशी बैक्टीरिया की वजह से होती है। यह एक संक्रामक रोग है। ये इन्फेक्टेड पिस्सुओं यानी चिगर्स के काटने से उसके शरीर से मनुष्य के शरीर में फैलता है। ये बहुत छोटे-छोटे कीड़े होते हैं, जो ज्यादातर घास, झाड़ियों, चूहों, खरगोशों और गिलहरियों जैसे जानवरों के शरीर पर होते हैं। इसे बुश टाइफस भी कहा जाता है। वैसे तो पूरे साल ही स्क्रब टाइफस बीमारी होने का रिस्क रहता है। लेकिन बारिश के मौसम में चूंकि कीड़ों की संख्या बढ़ जाती है, इसिलए इस मौसम में इनके काटने का रिस्क भी बढ़ जाता है। पहाड़ों के अलावा ये झाड़ियों, खेतों और जानवरों के शरीर में भी कई बार दिख जाते हैं। चूंकि यह एक संक्रामक बीमारी है, इसलिए जब कोई हेल्दी व्यक्ति बैक्टीरिया से इन्फेक्टेड व्यक्ति के संपर्क में आता है तो उसे भी स्क्रब टाइफस हो सकता है। कीड़े के काटने के अलावा ये बैक्टीरिया कीड़े के मल के कॉन्टेक्ट में आने से भी मनुष्य के शरीर में फैल सकते हैं। साथ ही जहां पर जूं या कीट ने काटा है, उस जगह को खुरचने या खुजली करने पर भी स्किन के संपर्क में आए बैक्टीरिया आपके खून तक पहुंच सकते हैं। बिना टेस्ट किया हुआ खून चढ़ाने या फिर इन्फेक्टेड सूई का इस्तेमाल करने से भी ये बैक्टीरिया शरीर के अंदर पहुंच सकते हैं।

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