हिमाचल प्रदेश में तिब्बती शरणार्थियों के मताधिकार को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने दावा किया है कि 1987 के बाद जन्मे तिब्बतियों को भी मतदान का अधिकार दिया गया है। यह बयान कानूनी और संवैधानिक दृष्टि से विवादास्पद है। लोकतांत्रिक ढांचे में और अधिक एकीकृत होंगे निर्वासित तिब्बती संसद के प्रतिनिधिमंडल के साथ शिमला में एक बैठक में पठानिया ने कहा कि निर्वासित तिब्बती पिछले 65 वर्षों से भारत में रह रहे हैं और धर्मशाला तिब्बती संघर्ष का केंद्र रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस कदम से तिब्बती भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में और अधिक एकीकृत होंगे। हाईकोर्ट का मिला था समर्थन हालांकि वास्तविक स्थिति इससे अलग है। भारत के चुनाव आयोग ने 2014 में स्पष्ट किया था कि केवल 26 जनवरी 1950 से 1 जुलाई 1987 के बीच जन्मे तिब्बतियों को ही भारतीय नागरिकता अधिनियम के तहत मतदाता सूची में शामिल किया जा सकता है। इस व्याख्या को 2010 और 2013 में दिल्ली और कर्नाटक हाईकोर्ट का समर्थन भी मिला था। औपचारिक रूप से नागरिकता प्राप्त करें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार मतदान का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही है। 1987 के बाद जन्मे तिब्बती जन्म से भारतीय नागरिकता के पात्र नहीं हैं। वे केवल तभी मतदान कर सकते हैं जब वे औपचारिक रूप से भारतीय नागरिकता प्राप्त करें। इस प्रकार विधानसभा अध्यक्ष का बयान वर्तमान कानूनी प्रावधानों के विपरीत प्रतीत होता है। राजनीतिक रूप से यह बयान तिब्बती निर्वासितों के प्रति एकजुटता का संकेत है, लेकिन कानूनी रूप से इसमें कई अस्पष्टता हैं।