{ नूतन प्रकाश ठाकुर } 6 दिसम्बर 1992 से लेकर 5 अगस्त 2020 , एक लंबा कालखंड गुजर गया। 28 वर्षों के बाद आखिर भव्य मंदिर निर्माण का कार्य शुरू होगा। 1992 से पूर्व भी राममंदिर को लेकर कई आंदोलन लड़े गए लेकिन बाबरी मस्जिद का ढांचा 6 दिसम्बर 1992 को नेस्तानाबूद कर दिया गया। मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूं कि 1992 की उस ऐतिहासिक कारसेवा में मुझे भी बाबरी मस्जिद का मलबा हटाने का सौभाग्य हासिल हुआ। अतीत की ओर टहलता मन, और 1992 के उस शीत वातावरण को लेकर आज कई बार ये सब कल्पनातीत लगता है। 21 वर्ष की आयु में घर से भाग कर और बिना परिवार को सूचना दिए हुए रामकाज के लिए जाना एक जनून ही था। उस समय और इस समय की रामभक्ति में काफी अंतर महसूस कर रहा हूँ। आज हर कोई सोशल मीडिया में अपने को सबसे बड़ा राम भक्त साबित करने में जुटा है, लेकिन आज के फेसबुकिया राम भक्तों को शायद ही यह मालूम होगा कि राम कोठारी और शरद कोठारी सरीखे हजारों राम भक्त राम के लिए शहीद हो गए। कितना अच्छा होता कि 1992 के कारसेवकों को एक भगवा पटका देकर उन्हें सम्मान दिया जाता। देश और धर्म के लिए जान की बाजी लगाने वालों का सम्मान अगर नहीं होगा तो भविष्य में कौन इस तरह का दुसाहसिक कार्य करेगा। मुझे याद है कि जब पूरे देश मे शिला पूजन कार्यक्रम चला था तो मेरे अपने कस्बे में मेरा यह कह कर मजाक उड़ाया गया था कि ‘काम न धाम बड़े आये जय श्रीराम वाले। उस दौरान कई लोगों ने राम मंदिर के लिए सवा रुपये का दान तक देने से मना किया था, लेकिन दुर्भाग्य देखिए आज वही लोग हमें संघ, विहिप और भाजपा सीखा रहे हैं। 1992 का वो सफर सुहाना नहीं था स्थिति गम्भीर थी , कुछ भी हो सकता और अयोध्या जाने से पूर्व संगठन के वरिष्ठ लोगों ने हमें सभी खतरों और सावधानियों से अवगत करवा दिया था। बहुत सारे लोग थे जो नाम लिखाने के बावजूद तय समय पर कुल्लू नहीं पंहुच पाए थे। खैर 28 वर्षों के लंबे समय के बाद रामलला का मंदिर निर्माण शुर हो रहा है सभी कारसेवकों को बधाई और इस आंदोलन में शहीद हुए हजारों कारसेवकों को भावभीनी श्रद्धांजलि।

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