हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के आनी मेले की शुरुआत 7 मई से हो रही है। यह मेला 135 साल पुरानी परंपरा से जुड़ा है। इसकी शुरुआत आनी के तत्कालीन राजा हीरा सिंह के समय में हुई थी। उस समय क्षेत्र में एक भयंकर महामारी फैली थी। सैकड़ों लोग बीमार हो गए थे। राजा हीरा सिंह ने राज पुरोहित की सलाह पर स्थानीय देवताओं की शरण ली। पच्चीस बैसाख का दिन चुना उन्होंने शम-शरी महादेव, पनेउई नाग और देउरी नाग से प्रार्थना की। कहा जाता है कि देवताओं की कृपा से लोग स्वस्थ हो गए। राजा ने खुशी में देवताओं से मेला आयोजित करने की अनुमति मांगी। देवताओं ने पच्चीस बैसाख का दिन चुना। तब से हर साल इसी दिन मेले का आयोजन होता है। हिंदी और पंजाबी गीतों ने ली जगह पहले इस मेले में रात भर कुल्लवी नाटी और देवनृत्य होते थे। समय के साथ मेले का स्वरूप बदला है। अब पारंपरिक लोकगीत और देवनाटी कम देखने को मिलते हैं। इनकी जगह हिंदी और पंजाबी गीतों ने ले ली है। नगर पंचायत की अध्यक्ष होमेश्वरी जोशी का कहना है कि विलुप्त होती संस्कृति को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।

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