(अनुरंजनी गौत्तम- कुल्लू) अठारह करड़ू सौह में देवी-देवताओं के आगमन से अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का आगाज हो गया है। इस देव महाकुंभ मेें देवी-देवता हारियानों संग वाद्य-यंत्रों की धूनों पर रथ में सवार होकर कुल्लू पहुंच रहे हैं। वहीं, उपमंडल बंजार के चार देवता बड़ा छमाहंू, पलदी छमाहूं, बासूकी नाग और खरीहडू भी लाव-लश्कर संग दशहरा में शिरकत करने पहुंचे। इनके आगमन से देवताओं और मनुष्यों का एक अनूठा बंधन देखने को मिला। देवता और हारियान एक साथ मालरोड पर नाटी में थिरकते नजर आए। इन चारों देवताओं के साथ आए करीब 30 हायिानों ने कुल्लवी परिधानों में नाटी डाली। दशहरा में इन देवताओं और देवलुओं की नाटी आकर्षण का केंद्र बनी रही।गौर रहे कि साल 1960 में उपमंडल बंजार के देवता पलदी छमाहूं के साथ हारियान कुल्लवी परिधान में सजकर नाटी डालते हुए कुल्लू दशहरा में आए थे। इसके बाद देवता और हारियान नाटी डालते हुए दशहरा में आए, लेकिन कुल्लवी परिधानों में नहीं। इस बार हारियानों ने दोबारा 63 साल पुरानी परंपरा को अपनाया है। देवता पलदी छमाहूं, बासूकी नाग और खरीहडू के साथ हारियान जिला मुख्यालय कुल्लू से पांच किलोमीटर दूर स्थित मौहल से पारंपरिक कुल्लवी परिधानों में सजकर नाटी डालते हुए आए। वहीं, टीकरा बाबड़ी से देवता बड़ा छमाहूं और उनके हारियान भी इनके जश्र में शामिल हुए। इस संबंध में देवता पलदी छमाहूं के ठाकुर दूर सिंह ने कहा कि 63 साल बाद हारियानों ने पौरांणिक परंपरा का निर्वहन करने का निर्णय लिया है। कहा कि दशहरा में कुल्लवी परिधानों में सजकर देव रथों के साथ वाद्य-यंत्रों की धून पर नाटी डालते हुए हारियान दशहरा में आए हैं।