हिमाचल-उतराखंड की सीमा पर स्थित आसन बैराज वेटलैंड में प्रवासी परिंदों ने दस्तक दे दी है। देहरादून और हिमाचल प्रदेश के पावंटा साहिब के बीच वेटलैंड में यह प्रवासी पक्षी यूरोप, मध्य एशिया व साईबेरिया आदि देशों के क्षेत्रों से आते हैं। विदेशों में सर्दियों के मौसम में झीलें व समुद्र जम जाते हैं। जिस कारण हजारों मील दूर से प्रवासी परिंदे हर साल अक्टूबर और नवंबर में आसन झील में पहुंचना शुरू हो जाते हैं। इस आसन वेटलैंड झील की पटेरा नामक घास इनके आवास व प्रजनन के लिए बहुत ही अनुकूल है। जिस कारण यहां पर प्रवासी परिंदे पहुंचते हैं। इसके अलावा विदेशी परिंदों को यहां पर उनके पसंद का भोजन, फलौरा व फोना आदि इस झील में मौजूद है। इस बार परिंदों की प्रजातियों की संख्या कम
इसी कारण हर साल बड़ी संख्या में यह पक्षी आसन झील का रूख करते हैं। अभी तो प्रवासी परिंदों का यहां पहुंचना जारी है। यह प्रवासी परिंदे हर साल आते हैं। यहां पर हर साल 61 प्रजातियों के परिंदे आते हैं और इस बार भी करीब 6000 परिदें हजारों मील दूर से यहां पहुंचने की उम्मीद है। यह प्रवासी परिदें नवंबर में सर्दी शुरू होते ही यहां पहुंचना शुरू करते है। जबकि मार्च में गर्मी आने से पहले ही यह प्रवासी परिदें आसन वेटलैंड को छोड़कर अपनी धरती की ओर रवाना हो जाते हैं। पिछले वर्षों की अपेक्षा इस बार विदेशी परिंदों की प्रजातियों की संख्या अभी कम है। दिसंबर तक पहुंच सकते हैं 4 हजार से अधिक विदेशी पक्षी
यहां पर हर साल विदेशों से पहुंचने वाले मेहमानों में शेलडक, पिनटेल्स, रूडी, यूरेषियन, शावलर, रेड ग्रेस्टर, पोचार्ड, डक, टफ्ड, स्पाट बिल, मोरगेन, टील, डकएकामन व पांड आदि पक्षी पहुंचते है। विभाग के मुताबिक दिसंबर तक 4 हजार से अधिक विदेशी पक्षी यहां पहुंच सकते है। जबकि फरवरी आते आते इनकी संख्या 6 हजार से ज्यादा हो जाती है। 440.44 हेक्टेयर पर फैला है वेटलैंड कंजर्वेशन
इस आसन रिर्जव कंजर्वेशन को वर्ष 2005 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने राष्ट्र को समर्पित किया था। यह कंजर्वेशन भारत का पहला वेटलैंड कंजर्वेशन रिजर्व है। यह 440.44 हेक्टेयर पर फैला हुआ है। यहां पर हर साल सर्दियों में विदेशी परिदें 2000 किमी से भी अधिक की दूरी तय कर पहुंचते हैं। जिन ठंडे देशों से यह परिंदे पहुंचते हैं वहां पर सर्दियों मे झीलें जम जाती है। अक्तूबर से मार्च तक आसन झील ही इन परिदों का आशियाना होता है। मीलों दूर का सफर तय करने के बाद पांवटा समीप आसन बैराज में पहुंचे परिदों से इन दिनों आसन झील गुलजार हो गई है।