हिमाचल हाईकोर्ट में आज प्रदेश में पंचायत चुनाव में देरी मामले में दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई होगी। राज्य सरकार और स्टेट इलेक्शन कमीशन दोनों कोर्ट को बताएंगे कि पंचायत चुनाव को लेकर उनकी क्या तैयारी है। कोर्ट ने पिछली सुनवाई में ही सरकार और इलेक्शन कमीशन को नोटिस जारी कर रखा है। इस मामले में बीते गुरुवार को भी हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। उस दिन भी अदालत का रुख सख्त नजर आया। कोर्ट ने पूछा कि सरकार चुनाव क्यों नहीं कराना चाह रही। लिहाजा आज सरकार को लिखित जवाब के माध्यम से चुनाव टालने की वजह अदालत को बतानी होगी। ऐसे में आज की सुनवाई पर पूरे प्रदेश की जनता की नजरे टिकी है। प्रदेश में पंचायत चुनाव अब कोर्ट के फैसले पर निर्भर है, क्योंकि सरकार आपदा का हवाला देते हुए चुनाव कराने को तैयार नहीं है। इसे देखते हुए एडवोकेट मंदीप चंदेल ने PIL डाल रखी है। उन्होंने समय पर चुनाव कराने की मांग की है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि डिजास्टर ग्राउंड की आड़ पर अनिश्चितकाल तक चुनाव नहीं टाले जा सकते। वहीं मुख्य सचिव संजय गुप्ता ने बीते 8 अक्टूबर को डिजास्टर एक्ट का हवाला देते हुए आपदा से हालात सामान्य होने के बाद पंचायत चुनाव कराने की बात कही है। इसके बाद, कैबिनेट ने भी चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले पंचायतों के पुनर्गठन का फैसला लिया है। यदि पंचायतों का पुनर्गठन किया जाता है तो इस प्रक्रिया में दो से ढाई महीने का वक्त लगेगा। इससे तय समय पर चुनाव नहीं हो पाएंगे। संविधान के अनुच्छेद 243-ई की अनुपालना का आग्रह याचिका में कहा गया कि हिमाचल में पिछली पंचायत चुनाव प्रक्रिया दिसंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच तीन चरणों में हुई थी। संविधान के अनुच्छेद 243-ई के मुताबिक हर पंचायत का कार्यकाल 5 साल से ज्यादा नहीं हो सकता और मौजूदा जन प्रतिनिधियों का कार्यकाल खत्म होने से पहले ही चुनाव करवाना जरूरी है। मगर अब तक इलेक्शन कमीशन ने चुनाव का कार्यक्रम जारी नहीं किया और न ही तैयारी की है। संविधान और कानून का हवाला याचिका में संविधान के अनुच्छेद 243-ई और 243-के के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धाराओं 120 और 160 का उल्लेख किया गया है। इन प्रावधानों में कहा गया है कि- हर पंचायत का कार्यकाल 5 साल से ज्यादा नहीं होगा। स्टेट इलेक्शन कमीशन पर यह जिम्मेदारी है कि वह पंचायतों के चुनाव समय पर करवाएं। सरकार किसी भी स्थिति में चुनाव को टाल नहीं सकती, जब तक कोई असाधारण परिस्थिति जैसे प्राकृतिक आपदा या गंभीर कानून-व्यवस्था की समस्या न हो। याचिकाकर्ताओं का कहना याचिकाकर्ता का कहना है कि यह याचिका किसी राजनीतिक या निजी स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि जनहित में दायर की गई है। अगर समय पर चुनाव नहीं हुए, तो राज्य में पंचायत राज संस्थाएं अपनी वैधानिक स्थिति खो देंगी और लोकतांत्रिक शासन की जड़ें कमजोर होंगी। दिसंबर-जनवरी में प्रस्तावित है चुनाव हिमाचल की 3577 पंचायतों और 71 नगर निकायों में इसी साल चुनाव होने हैं। मौजूदा प्रतिनिधियों का कार्यकाल 31 जनवरी 2026 को पूरा हो रहा है। इलेक्शन कमीशन को इससे पहले हर हाल में चुनाव कराना है, यह संवैधानिक बाध्यता भी है। मगर जिस तरह के हालात बन रहे हैं, उसे देखते हुए ये चुनाव समय पर होते नजर नहीं आ रहे है। स्टेट इलेक्शन कमीशन दिसंबर में चुनाव कराना चाह रहा है, क्योंकि जनवरी में शिमला, मंडी, लाहौल स्पीति, किन्नौर, कांगड़ा, कुल्लू और सिरमौर जिला के कई भागों में कई बार भारी बर्फबारी हो जाती है। पंचायतों में पांच पदों पर होने हैं चुनाव पंचायतों में यह चुनाव पांच पदों (प्रधान, उप प्रधान, वार्ड मेंबर, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य) के लिए होने हैं, जबकि शहरी निकाय में वार्ड पार्षद के लिए वोटिंग होनी है। इसी तरह 71 नगर निकायों में पार्षद चुने जाएंगे।