हिमाचल सरकार 24 से 31 दिसंबर तक ‘कांगड़ा वैली कार्निवल’ का आयोजन करने जा रही है। इसके लिए, प्रशासन विभिन्न व्यापारिक संस्थानों से चंदा (आर्थिक सहयोग) जुटा रहा है। इससे जुड़ा सिविल सप्लाई डिपार्टमेंट के कांगड़ा जिला नियंत्रक का एक पत्र सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। इस पत्र पर विवाद खड़ा हो गया है। सोशल मीडिया यूजर सरकारी कार्निवल में सहयोग राशि को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने भी इस पर सवाल खड़े किए है। दरअसल, सिविल सप्लाई डिपार्टमेंट के जिला नियंत्रक के पत्र में कार्निवल के लिए पेट्रोल पंप, एलपीजी गैस एजेंसियों, एचपीटीएल लाइसेंस धारकों, चावल व आटा मिलर्स और ईंट भट्ठा मालिकों से सहयोग राशि मांगी देने का अनुरोध किया गया है। डिपार्टमेंट के इंस्पेक्टर ग्रेड-1 के माध्यम से सहयोग राशि एकत्र करने डिप्टी कमिश्नर कांगड़ा को भेजी जाएगी। इन आदेशों से व्यापारी वर्ग नाराज है। मगर विभागीय इंस्पेक्टर की कार्रवाई के डर से कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं है और असहज महसूस कर रहे है। पत्र में कहा गया कि जिला प्रशासन द्वारा कांगड़ा वैली कार्निवाल का आयोजन किया जा रहा है। यह आयोजन जिले की लोक कला, संस्कृति, पर्यटन और सामाजिक सहभागिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया जा रहा है। प्रशासन का कहना है कि यह कार्निवाल कांगड़ा घाटी की समृद्ध विरासत को प्रदर्शित करने के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक विकास में भी सहायक होगा। पत्र में संबंधित संस्थानों से आग्रह किया गया कि वे कार्निवाल के सफल आयोजन के लिए वित्तीय योगदान दें। जिला नियंत्रक ने योगदान जल्द से जल्द, निर्धारित तिथि से पहले भेजने का अनुरोध किया है, ताकि उसे समेकित कर जिला प्रशासन को सौंपा जा सके। क्या यह आदेश कानूनी रूप से अनिवार्य है? कानूनी जानकारों के मुताबिक, किसी भी सरकारी विभाग के पास लाइसेंसधारी व्यापारियों से जबरन या बाध्यकारी आर्थिक सहयोग मांगने का अधिकार नहीं है। यदि कोई राशि कानून, नियम या अधिसूचना के तहत तय नहीं है, तो उसे स्वैच्छिक ही माना जाता है। हालांकि जारी पत्र में ‘अनुरोध’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन राशि को विभागीय इंस्पेक्टरों के जरिए एकत्र करने और उसे डिप्टी कमिश्नर को सौंपने की व्यवस्था ने इस प्रक्रिया को दबावपूर्ण बना दिया है। यही कारण है कि इस आदेश पर सवाल उठ रहे हैं। लाइसेंसधारी व्यापारियों पर दबाव का आरोप पेट्रोल पंप, गैस एजेंसियां, मिलर्स और ईंट भट्ठा मालिक सीधे तौर पर सिविल सप्लाई डिपार्टमेंट के निरीक्षण, लाइसेंस और कार्रवाई के दायरे में आते हैं। इस वजह से सोशल मीडिया यूजर्स सवाल खड़े कर रहे हैं और इन संस्थानों से सहयोग से अनुरोध को स्वैच्छिक नहीं मान रहे। तर्क दिया जा रहा है कि जब योगदान मांगने वाला विभाग ही लाइसेंसिंग अथॉरिटी है, तो व्यापारी ‘ना” कहने की स्थिति में नहीं होते। इसी वजह से इसे इनडायरेक्ट टैक्स या जबरन चंदा बताया जा रहा है। सरकारी दर्जा मिलने के बाद क्यों चंदा? विवाद इसलिए भी गहरा गया है क्योंकि तीन दिन पहले ही हिमाचल सरकार ने कांगड़ा वैली कार्निवाल को सरकारी दर्जा दिया। मकसद कांगड़ा में पर्यटन को बढ़ावा देना था। सरकार ने कहा कि अब यह आयोजन हर साल 24 से 31 दिसंबर तक होगा और इसके लिए बजट की कोई कमी नहीं रहेगी। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जब यह अब सरकारी उत्सव है और सरकार इसके लिए बजट उपलब्ध करा रही है, तो फिर अलग से व्यापारियों से सहयोग क्यों मांगा जा रहा है? नियमों के मुताबिक क्या होना चाहिए? कायदे से यदि कार्यक्रम पूरी तरह सरकारी है, तो उसका खर्च सरकारी बजट, पर्यटन विभाग या संस्कृति विभाग के माध्यम से वहन किया जाना चाहिए। निजी या व्यापारिक संस्थानों से सहयोग तभी लिया जा सकता है जब: इन शर्तों का पत्र में स्पष्ट उल्लेख नहीं है, जिस पर विवाद खड़ा हुआ है। अब प्रशासन की प्रतिक्रिया का इंतजार फिलहाल प्रशासन की ओर से इस विवाद पर कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं आया है। सोशल मीडिया में बढ़ते विरोध के बीच यह देखना अहम होगा कि क्या जिला प्रशासन इस आदेश को स्पष्ट करेगा या सहयोग जुटाने की प्रक्रिया में बदलाव किया जाएगा।