आठ साल पहले देश की पहली स्मार्ट सिटी बनने का तमगा पाने वाली धर्मशाला आज भी अधूरी स्मार्ट सिटी परियोजनाओं और खराब रोशनी की समस्या से जूझ रही है। नगर निगम द्वारा अधूरी एलईडी स्ट्रीट लाइट परियोजना में करोड़ों रुपए खर्च किए जाने के बावजूद शहर की कई गलियां अभी भी अंधेरे में हैं। आरटीआई कार्यकर्ता कुलतार चंद गुलेरिया ने नगर निगम से प्राप्त जानकारी के आधार पर खुलासा किया कि एलईडी लाइट्स की मरम्मत पर करीब 30 लाख रुपए खर्च किए गए, जबकि इन लाइटों का इंस्टालेशन काम अभी भी पूरा नहीं हुआ है। चार साल पहले एचपीएल इलेक्ट्रिकल एंड पावर लिमिटेड को 24.92 करोड़ रुपए की लागत से 7000 एलईडी स्ट्रीट लाइट लगाने का ठेका दिया गया था। इस योजना के तहत 17 वार्डों में नई लाइटें लगाई जानी थीं और 2280 पुरानी लाइटें बदलनी थीं। इनमें से कई लाइटें सेंसर से लैस ‘स्मार्ट लाइट्स’ भी थीं। लेकिन फिलहाल नगर के अधिकांश हिस्से अभी भी अंधेरे में हैं। तय समय पर पूरा नहीं किया गया कार्य नगर निगम की 14 जुलाई 2023 की बैठक में ठेकेदार को काम पूरा करने के लिए आखिरी मौका दिया गया था, लेकिन तय समय बीत जाने के बाद भी कार्य अधूरा है। स्मार्ट सिटी के जीएम इंजीनियर विशाल चौधरी ने स्वीकार किया कि बारिश के कारण लगभग 30 प्रतिशत लाइटें खराब हो गई हैं। उन्होंने बताया कि अभी केवल पांच वार्डों की लाइट क्वालिटी की जांच की गई है। वहीं ठेकेदार कंपनी के मैनेजर पारस ने कहा, “हमने इंस्टालेशन पूरा कर दिया था, लेकिन पिछले दो साल से नगर निगम ने मेंटिनेंस कॉन्ट्रैक्ट साइन नहीं किया। अब कंपनी रिपेयर नहीं करेगी।” स्थानीय लोगों ने इस मामले को लेकर नाराजगी जताई। उनका कहना है कि जहां लाइटें अभी तक नहीं लगी हैं, वहां मरम्मत पर लाखों रुपए खर्च करना स्पष्ट वित्तीय अनियमितता है। आरटीआई कार्यकर्ता कुलतार गुलेरिया ने सवाल उठाया कि, जब काम अधूरा था तो मरम्मत का भुगतान किस आधार पर किया गया? यह सार्वजनिक धन की सीधी बर्बादी है। नगर निगम ने मेंटिनेंस कॉन्ट्रैक्ट साइन नहीं किया : पारस वहीं ठेकेदार कंपनी के मैनेजर पारस का कहना है कि हमने इंस्टालेशन पूरा कर दिया था, लेकिन पिछले दो साल से नगर निगम ने मेंटिनेंस कॉन्ट्रैक्ट साइन नहीं किया। अब कंपनी रिपेयर नहीं करेगी।”स्थानीय लोगों में इस पूरे मामले को लेकर नाराजगी है। उनका कहना है कि जहां लाइटें लगी ही नहीं हैं, वहां मरम्मत पर लाखों खर्च करना स्पष्ट वित्तीय अनियमितता है। आरटीआई कार्यकर्ता कुलतार गुलेरिया ने सवाल उठाया- जब काम अधूरा था तो मरम्मत का भुगतान किस आधार पर हुआ? यह सार्वजनिक धन की सीधी बर्बादी है।