आज बुधवार को ऐतिहासिक कुल्लू दशहरा उत्सव का समापन होगा। हिमाचल प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री को समापन समारोह का मुख्य अतिथि होना था, लेकिन बिलासपुर में हुई दुर्घटना के कारण वे रात में ही लौट गए। कुल्लू के विधायक सुंदर सिंह ठाकुर समापन समारोह के मुख्य अतिथि हो सकते हैं। सात दिवसीय इस अंतरराष्ट्रीय उत्सव का समापन आज शाम ‘लंका दहन’ के प्रतीकात्मक अनुष्ठान और आराध्य भगवान रघुनाथ जी की रथ यात्रा के साथ होगा। परंपरा के अनुसार, कुल्लू दशहरा में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता, बल्कि ‘लंका दहन’ नामक एक प्रतीकात्मक अनुष्ठान होता है। कहां पर होगा अनुष्ठान? यह अनुष्ठान व्यास नदी के किनारे एक निर्धारित स्थान पर किया जाएगा, जहां अस्थायी रूप से लंका दहन का दृश्य स्थापित किया जाता है। माना जाता है कि यह प्रतीकात्मक दहन सभी देवी-देवताओं की शक्तियों के सम्मिलित प्रभाव से होता है, जिसके बाद इस भव्य उत्सव का औपचारिक समापन हो जाता है। समापन समारोह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा आराध्य भगवान रघुनाथ जी की रथ यात्रा होगी। यह यात्रा शाम 4 बजे के बाद शुरू होगी, जिसमें भगवान रघुनाथ को विदाई दी जाएगी। इस रथ यात्रा में सभी देवी-देवता भगवान रघुनाथ के साथ चलेंगे। रथ को भक्तों, जिन्हें ‘हारियान’ कहा जाता है, द्वारा रस्से के माध्यम से खींचा जाएगा। इस दौरान ढालपुर मैदान का वातावरण भगवान रघुनाथ के जयघोष और ढोल-नगाड़ों की गूंज से भर उठेगा। भक्तों और देवता के संबंधों तो दर्शाती है परंपरा कुल्लू दशहरे की एक अनूठी परंपरा के तहत, जिन स्थानीय देवी-देवताओं ने उत्सव के दौरान भगवान रघुनाथ के साथ सुल्तानपुर बेड़े (शिविर) में निवास किया, उन्हें वापस अपने गांवों को ले जाने में उनके हारियानों (सेवकों) को प्रयास करना पड़ता है। कई देवता रघुनाथ जी के सानिध्य में ही रहना चाहते हैं, जिसके कारण उन्हें वापस ले जाने में कुछ समय लगता है। देवता के बाजा नवाज (ढोंशी) और हारियान उन्हें समझाकर अपने-अपने गांवों के लिए ले जाते हैं। यह परंपरा देवताओं और भक्तों के बीच गहरे आध्यात्मिक संबंध को दर्शाती है।