इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) शिमला ने शिशु शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। अस्पताल के डॉक्टरों ने मात्र दो दिन के नवजात शिशु में ग्रसनी-अवरोध (Esophageal Atresia) और श्वासनली-ग्रसनी नालव्रण (Tracheoesophageal Fistula) जैसी जटिल जन्मजात बीमारी का सफल ऑपरेशन किया है। यह शिशु कमला नेहरू अस्पताल (केएनएच) शिमला में 2.4 किलोग्राम वजन के साथ जन्मा था। जन्म के तुरंत बाद बच्चे को अत्यधिक लार आने और ओरोगैस्ट्रिक ट्यूब पेट तक न पहुंच पाने की समस्या हुई, जिसके बाद उसे आईजीएमसी रेफर किया गया। बच्ची को पीआईसीयू में किया गया भर्ती आईजीएमसी में शिशु को डॉ. प्रवीन भारद्वाज की देखरेख में पीआईसीयू में भर्ती किया गया। जीवन के दूसरे दिन ही उसकी शल्य चिकित्सा की गई। ऑपरेशन के दौरान बच्चे की भोजन नली का पुनर्निर्माण किया गया और श्वासनली से जुड़ी असामान्य नली को हटाया गया। इस चुनौतीपूर्ण सर्जरी को डॉ. राज कुमार, डॉ. कमल कांत शर्मा, डॉ. प्रदीप की टीम ने सफलतापूर्वक अंजाम दिया। एनेस्थीसिया टीम में डॉ. एस. सोढी, डॉ. दारा सिंह नेगी, डॉ. कार्तिक, डॉ. राधिका, डॉ. मेहक, डॉ. सृष्टि और डॉ. शिवानी का विशेष योगदान रहा। डॉ. एस. सोढी ने फ्लेक्सिबल वीडियो ब्रोंकोस्कोप की मदद से शिशु का सफल इंटुबेशन किया, जिसमें उन्हें डॉ. कार्तिक सायल, ओटी सहायक श्री कमेश्वर, नर्सिंग स्टाफ मिस सपना और मिस दीपिका का सहयोग मिला। आपरेशन के बाद ऑपरेशन के बाद वार्ड सिस्टर रीटा के नेतृत्व में नर्सिंग स्टाफ श्यामा, स्मृति, सविता, तेजस्विनी, रंजना और शालू ने शिशु की देखभाल की। सतत निगरानी और समर्पित देखभाल के कारण बच्चे का स्वास्थ्य सुरक्षित रूप से सुधरा और उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इस उपलब्धि पर बाल शल्य चिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ. राज कुमार ने कहा, “ग्रसनी-अवरोध और श्वासनली-ग्रसनी नालव्रण जीवन-घातक जन्मजात विकृति है। नवजात शिशु की जान बचाने के लिए समय पर पहचान और विशेषज्ञ सर्जरी महत्वपूर्ण है।”