उत्तराखंड-हिमाचल प्रदेश के बड़े हिस्से में न्याय के देवता मानें जाने वाले छत्रधारी चालदा महासू महाराज की ऐतिहासिक प्रवास यात्रा शनिवार रात को हिमाचल प्रदेश पहुंच गई है। शनिवार रात को यह देव यात्रा मीनस नदी के तट से जिला सिरमौर के द्राबिल गांव में दाखिल हुई, जहां 30 से 40 हजार श्रद्धालुओं की भारी भीड़ चालदा महासू महाराज के दर्शनों के उमड़ी। दूर दूर से श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचे हुए थे। इस दौरान “महासू महाराज की जय” के जयकारों से पूरी शिलाई घाटी में गूंज रही। यात्रा द्राबिल पहुंचने के बाद रविवार को पशमी के लिए रवाना होगी। ऐतिहासिक पल के साक्षी बनने के लिए लगी श्रद्धालुओं की भीड़ द्राबिल से देव यात्रा पैदल ही पशमी के लिए प्रस्थान करेगी। अनुमान है कि यह यात्रा रविवार देर रात तक पशमी पहुंचेगी, जहां न्याय के देवता के लिए निर्मित दो भव्य मंदिरों में से एक में वे विराजमान होंगे। इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बनने के लिए सिरमौर के साथ-साथ शिमला, सोलन और उत्तराखंड से हजारों श्रद्धालु द्राबिल पहुंचे थे। श्रद्धालुओं की संख्या इतनी अधिक थी कि सड़कों पर पैर रखने की जगह नहीं बची। देव पालकी के पारंपरिक वादन, शंख-घड़ियालों की गूंज और भक्तिमय वातावरण ने पूरे क्षेत्र को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। पशमी और आसपास के गांवों में यात्रा को लेकर विशेष उत्साह देखा जा रहा है। ग्रामीणों ने अपने घरों और मंदिरों को सजाकर देवता के स्वागत की तैयारियां की हैं। यात्रा के दौरान सुरक्षा, व्यवस्था और आवभगत की जिम्मेदारी स्थानीय युवाओं और विभिन्न समितियों ने संभाली हुई है। बाहर लाई गई महासू महाराज की पालकी सूचना के अनुसार द्राबिल पहुंचते ही द्राबिल मंदिर से महासू महाराज की पालकी बाहर लाई गई। इसके बाद छत्रधारी चालदा महाराज की पालकी से उनका पारंपरिक मिलन कराया गया। वहीं हनोल में बौठा महाराज’ का मुख्य मंदिर है, जबकि द्राबिल गांव के मंदिर में भी ‘बौठा महाराज’ का चिह्न स्वरूप पालकी विराजमान है। एनएच-707 के समीप पड़ाव स्थल पर दोनों भाइयों—बौठा और चालदा महाराज का यह मिलन विशेष आस्था का केंद्र बना। मान्यता है कि चालदा महासू और महासू महाराज दोनों भाई थे।