हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के धर्मशाला में देशभर की ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों के संयुक्त आह्वान पर केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन हुआ। श्रम संहिताओं, निजीकरण, महंगाई और आउटसोर्सिंग जैसे मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन में हजारों लोगों ने भाग लिया। सीटू, इंटक और हिमाचल किसान सभा के कार्यकर्ता सुबह से ही धर्मशाला मुख्यालय में एकत्र हुए। प्रदर्शनकारियों की कई महत्वपूर्ण मांगें वहीं टांडा मेडिकल कॉलेज वर्कर्स यूनियन, भवन एवं सड़क निर्माण यूनियन, आंगनवाड़ी यूनियन समेत विभिन्न संगठनों के सदस्यों ने रैली में हिस्सा लिया। प्रदर्शनकारियों ने कई महत्वपूर्ण मांगें रखी। इनमें चारों श्रम संहिताओं को रद्द करने, राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन 26 हजार रुपए प्रतिमाह करने और आउटसोर्स कर्मचारियों को नियमित करने की मांग शामिल है। साथ ही BSNL, रेलवे, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में निजीकरण रोकने की मांग की गई। पेट्रोल-डीजल पर से टैक्स घटाए प्रदर्शनकारियों ने आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने, खाद्य वस्तुओं को GST से बाहर करने और पेट्रोल-डीजल पर टैक्स घटाने की मांग की। मनरेगा में 200 दिन रोजगार की गारंटी और किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी भी मांगों में शामिल है। आमजन विरोधी फैसले ले रही सरकार सीटू जिला अध्यक्ष केवल कुमार, इंटक प्रदेश महासचिव संजय सैनी, किसान सभा के अध्यक्ष जगदीश जग्गी सहित कई यूनियन नेताओं ने प्रदर्शन का नेतृत्व किया। प्रदर्शन के दौरान “श्रम कोड वापिस लो”, “निजीकरण बंद करो” जैसे नारे लगाए गए। 2014 के बाद से मोदी सरकार लगातार श्रमिक, किसान और आम जनता विरोधी फैसले ले रही है। जिन कानूनों को मजदूरों ने दशकों के संघर्ष से पाया था, उन्हें एक झटके में खत्म कर दिया गया है। अब सरकार पूंजीपतियों को खुश करने में लगी है। मजदूरों की आवाज को कुचलने की कोशिश उन्होंने श्रमिक हितों पर हमला बताते हुए कहा कि नए श्रम कोड के तहत हड़ताल करने पर एक दिन की जगह 8 दिन की तनख्वाह काटने और जेल तक की सजा का प्रावधान है। यह मजदूरों की आवाज कुचलने की कोशिश है। पूरे प्रदर्शन के दौरान प्रशासन पूरी तरह सतर्क रहा। रैली शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुई, हालांकि शहर में कुछ समय के लिए यातायात प्रभावित रहा।

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