कांगड़ा में धर्मशाला के मैकलोडगंज स्थित मुख्य तिब्बती मंदिर त्सुग्लाखांग में सोमवार को 14वें दलाई लामा का 90वां जन्मदिवस मनाया गया। तिब्बती चंद्र कैलेंडर के अनुसार यह आयोजन पांचवें महीने के पांचवें दिन किया गया। दलाई लामा का जन्म ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 6 जुलाई 1935 को हुआ था। समारोह का आयोजन डोमी प्रांत के लोगों ने किया। यह दलाई लामा का जन्मस्थान है। दलाई लामा गोल्फ कार्ट से मंदिर परिसर पहुंचे। मंदिर में भक्तों की लंबी कतारें उनकी प्रतीक्षा कर रही थीं। उनके आगमन पर परिसर जयकारों से गूंज उठा। कलाकारों ने प्रस्तुत किए तिब्बती नृत्य और गीत कार्यक्रम में कलाकारों ने पारंपरिक तिब्बती नृत्य और गीत प्रस्तुत किए। दलाई लामा की दीर्घायु के लिए विशेष प्रार्थना की गई। तिब्बती स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े कार्यकर्ताओं ने तिब्बत में चल रहे आंदोलन पर चर्चा की। विदेशी श्रद्धालु भी हुए शामिल मंदिर को पारंपरिक झंडियों और फूलों से सजाया गया था। स्थानीय निवासी, तिब्बती समुदाय, भिक्षु-भिक्षुणियां और विदेशी श्रद्धालु समारोह में शामिल हुए। दलाई लामा 1959 में तिब्बत से निर्वासन के बाद धर्मशाला में रह रहे हैं। वे शांति, करुणा और अहिंसा के वैश्विक प्रतीक हैं। उनके जन्मदिवस पर दुनिया भर से शुभकामनाएं मिल रही हैं। आगामी सप्ताह भर चलने वाले कार्यक्रमों का आयोजन केंद्रीय तिब्बती प्रशासन करेगा। 2 जुलाई को पुनर्जन्म पर कर सकते हैं घोषणा इस विशेष मौके पर एक और बड़ी घोषणा की संभावनाएं सामने आ रही हैं। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के अध्यक्ष सिक्योंग पेंपा त्सेरिंग के अनुसार, दलाई लामा 2 जुलाई को “पुनर्जन्म” को लेकर एक ऐतिहासिक घोषणा कर सकते हैं। जानकारी के अनुसार, 2 से 4 जुलाई के बीच धर्मशाला स्थित सीटीए मुख्यालय में तिब्बत की चार प्रमुख बौद्ध परंपराओं-साक्य, काग्यू, निंग्मा और गेलुग के वरिष्ठ धर्मगुरुओं के साथ दलाई लामा गहन विचार-विमर्श करेंगे। लाखों अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण घोषणा उनकी यह संभावित घोषणा न केवल तिब्बती समुदाय के लिए, बल्कि लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखंड और अरुणाचल जैसे क्षेत्रों में रहने वाले लाखों अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। दलाई लामा इन इलाकों में न केवल आध्यात्मिक गुरु हैं, बल्कि सामाजिक और नैतिक मार्गदर्शक भी हैं। उत्तराधिकारी की नियुक्ति पर चीन का विरोध हालांकि इस विषय को लेकर चीन पहले ही विरोध जता चुका है, और भविष्य में दलाई लामा के उत्तराधिकारी की नियुक्ति को नियंत्रित करने की कोशिशों में जुटा है। लेकिन दलाई लामा स्पष्ट कर चुके हैं कि उनका अगला पुनर्जन्म किसी स्वतंत्र समाज में होगा, और यह पुरुष भी हो सकता है या महिला भी। गौरतलब है कि वर्ष 2011 में दलाई लामा ने राजनीतिक भूमिका से स्वयं को अलग करते हुए लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सीटीए सरकार को जिम्मेदारी सौंपी थी। अब 2 जुलाई को होने वाली संभावित घोषणा को लेकर अंतरराष्ट्रीय बौद्ध समुदाय और वैश्विक स्तर पर भी निगाहें धर्मशाला पर टिकी हुई हैं। यदि दलाई लामा पुनर्जन्म को लेकर कोई औपचारिक घोषणा करते हैं, तो यह तिब्बती इतिहास में एक नया अध्याय साबित हो सकता है। चीनी अधिग्रहण के बाद वे भारत आए थे दलाई लामा दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को तिब्बत के आमदो क्षेत्र में हुआ था। वर्ष 1959 में चीनी अधिग्रहण के बाद वे भारत आए और तब से धर्मशाला में निर्वासन में रहकर विश्वभर में शांति, करुणा और अहिंसा का संदेश दे रहे हैं।

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