हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मैक्लोडगंज की डल झील रिसाव के कारण सूखने के कगार पर है। इससे झील की मछलियों पर खतरा मंडराना शुरू हो गया है। झील का लगभग आधा क्षेत्र गाद से भरा हुआ है। तिब्बती चिल्ड्रन विलेज स्कूल के स्टूडेंट्स ने गांधी जयंती पर स्वच्छता अभियान चलाकर बुधवार को डल झील में फैली गंदगी की सफाई की। इसके साथ ही उन्होंने मछलियों को बचाने को काम किया। छात्रों ने स्‍वच्‍छ भारत मिशन के सपने को साकार करने की शपथ ली। डल झील से लगातार हो रहे पानी के रिसाव से गाद उभर आ गई है। टीसीवी स्कूल के जनरल सेक्रेटरी चोयिंग धोंडुप ने बताया कि गांधी जयंती पर हर साल सफाई अभियान किया जाता है। लेकिन इस साल डल झील में रिसाव होने के चलते मछलियां मर रही हैं। गांधी जी के दर्शन अहिंसा परमो धर्म का अनुसरण करते हुए स्टूडेंट्स ने डल झील में स्वच्छता अभियान चलाया। डल झील पर अब तक 4.67 करोड़ रुपए खर्च धर्मशाला के एसडीएम संजीव भोट ने बताया कि नगर निगम के जेई को प्रारंभिक तौर पर मछलियों को बचाने के कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। साथ ही जल शक्ति विभाग को झील में समय-समय पर पानी की आपूर्ति करने के लिए कहा गया है। उप मुख्य सचेतक केवल सिंह पठानिया ने कहा कि डल झील से रहे रिसाव को लेकर विभाग से अब तक खर्च किए पैसों को ब्योरा मांगा गया था। जिसके तहत अब तक 4.67 करोड़ रुपए खर्च किए गए है। अब डल झील के रिसाव का स्थायी हल निकाला जाएगा। झील का आधा क्षेत्र गाद से भरा इससे पहले 2013, 2017, 2019, 2020, 2021 और नवंबर 2022 में भी झील में रिसाव हो चुका है। पहाड़ों की गाद ने इसकी गहराई कम कर दी थी। झील का लगभग आधा क्षेत्र गाद से भरा हुआ है, जिसे घास का मैदान बन गया है। झील से गाद निकालने के लिए 2011 में स्थानीय लोगों की मदद से एक बड़ा अभियान शुरू किया था। गाद का उपयोग मंदिर क्षेत्र के पास पार्किंग बनाने के लिए किया गया। तब से झील तेजी से सूख रही है। आईआईटी रुड़की के भूवैज्ञानिक विशेषज्ञों (जिन्होंने झील पर शोध किया था) ने भी झील की यांत्रिक डी-सिल्टिंग के खिलाफ सलाह दी थी और राज्य सरकार को इस संबंध में एक रिपोर्ट भी सौंपी थी। उनका मत था कि अवैज्ञानिक तरीके से खुदाई करने से झील के तल पर एक्वाडक्ट बन गए होंगे, जिससे पानी की निकासी हो रही थी।

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