भारत और न्यूजीलैंड के बीच सोमवार को हुए मुक्त व्यापार समझौते (FTA) ने हिमाचल प्रदेश के 5500 करोड़ रुपए के सेब उद्योग को संकट में डाल दिया है। इस समझौते ने हिमाचल समेत उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर के सेब बागवानों की चिंताएं बढ़ा दी है। न्यूजीलैंड के सेब पर अब 50 प्रतिशत के बजाय मात्र 25 प्रतिशत इम्पोर्ट ड्यूटी लगेगी। ड्यूटी कम होने से न्यूजीलैंड से भारत को सेब का आयात बढ़ेगा। इससे, हिमाचल व देश में पैदा होने वाले सेब के अच्छे रेट नहीं मिलेंगे। इस करार के बाद हिमाचल प्रदेश के तीन लाख से ज्यादा बागवान परिवार ठगा सा महसूस कर रहे हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने सुजानपुर रैली में सेब पर इम्पोर्ट ड्यूटी 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने का वादा किया था। मोदी द्वारा इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाने का वादा तो पूरा नहीं हुआ,लेकिन ड्यूटी कम जरूर कर दी गई। इस करार के मुताबिक, 1 अप्रैल से 31 अगस्त के बीच की अवधि में ही इम्पोर्ट ड्यूटी कम की गई है। ऐसे में हिमाचल का सेब मार्केट में आने से पहले ही न्यूजीलैंड के सस्ते सेब की वजह से बाजार गिरने का डर बागवानों का सताना शुरू हो गया है। सेब पर इम्पोर्ट ड्यूटी कम नहीं बढ़ाने की जरूरत: सोहन सेब उत्पादक संघ के अध्यक्ष सोहन ठाकुर कहा- देश की एपल इंडस्ट्री को बचाने के लिए इम्पोर्ट ड्यूटी 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 फीसदी करनी चाहिए, ताकि वे सस्ते आयातित सेब से प्रतिस्पर्धा कर सकें। मगर भारत सरकार उल्टा शुल्क कम कर रही है। हिमाचल के बागवानों पर पड़ेगी ज्यादा मार: दीपक स्टोन फ्रूट एसोसिएशन के अध्यक्ष और सेब बागवान दीपक सिंघा ने बताया- भारत-न्यूजीलैंड के बीच हुए करार के बाद देश में सेब का आयात बढ़ेगा। इसका सीधा असर कीमत पर पड़ेगा। उन्होंने कहा- यह कहना गलत है कि अप्रैल से अगस्त के बीच हिमाचल का सेब बाजार में नहीं आता, जबकि हिमाचल का सेब जून में मार्केट में आ जाता है और अगस्त में सेब सीजन पीक पर होता है। इस फैसले की सबसे ज्यादा मार हिमाचल के सेब बागवानों पर पड़ने वाली है। कोल्ड स्टोर में रखे सेब पर भी मार पड़ेगी भारत-न्यूजीलैंड के बीच समझौते का असर कोल्ड स्टोरेज (सीए) में रखे सेब की कीमतों पर भी पड़ेगा, क्योंकि हिमाचल के 6000 फीट से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों का बड़ी मात्रा में सेब कोल्ड स्टोर में रखा जाता है। यह सेब दिसंबर के बाद जून तक मार्केट में आता है। ऐसे में अप्रैल में न्यूजीलैंड का कम इम्पोर्ट ड्यूटी वाला सेब मार्केट में आने से हिमाचल के सेब के रेट गिरेंगे। इस वजह से हिमाचल के बागवान भड़क उठे है और केंद्र सरकार से इस समझौते को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। बागवानों के विरोध की एक ओर वजह हिमाचल में अभी प्रति हैक्टेयर 7 से 8 मीट्रिक टन सेब की पैदावार होती है, जबकि न्यूजीलैंड में प्रति हैक्टेयर 60 से 70 मीट्रिक टन सेब पैदा हो गया है। इस वजह से हिमाचल में प्रति किलो सेब तैयार करने पर लगभग 27 रुपए की लागत आती है। इससे हिमाचल के सेब बागवानों को तभी फायदा हो पाता है जब यहां के बागवानों का सेब कम से कम 50 से 60 रुपए बिके। ऐसे में यदि भारत सरकार अधिक पैदावार वाले देशों के सेब इम्पोर्ट पर ड्यूटी कम कर देता है तो हिमाचल का सेब मार्केट में कम्पीट नहीं कर पाएगा। इससे हिमाचल, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड का सेब उद्योग तबाह हो जाएगा।