उत्तराखंड के हिमाचल सीमा के पास जौनसार-बावर क्षेत्र के लोग चार दिन से फूट-फूट कर रो रहे हैं। यहां के आराध्य देवता ‘चालदा महासू महाराज’ बीते सोमवार को दसऊ मंदिर से हिमाचल के सिरमौर के पश्मी क्षेत्र की यात्रा पर निकल पड़े है। इसके बाद से जौनसार बाबर क्षेत्र देवता की याद में महिलाओं के आंसू नहीं थम रहे। बता दें कि ‘चालदा महासू महाराज’ हिमाचल और उत्तराखंड के हजारों लोगों के आराध्य है। यह देवता 2 साल 8 महीने तक उत्तराखंड के देहरादून के चकराता स्थित दसऊ मंदिर में विराजमान थे। अब अगले पांच साल सिरमौर के पश्मी मंदिर में रुकेंगे। दसऊ से पश्मी की यात्रा के दौरान दर्जनों गांव के हजारों लोग जगह-जगह देवता के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। चालदा महासू महाराज के विदाई की 4 PHOTOS… 4 दिन में 60 हजार से ज्यादा लोग दर्शन कर चुके चार दिनों में 60 हजार से ज्यादा लोग दर्शन कर चुके हैं। उत्तराखंड में आज देवता म्यार खेड़ा में दर्शन दे रहे हैं। दसऊ, दसक, समाल्टा, कोटी-कनासर, अणु, बांगसाल, आंछर, बड़वाड़ी और झोटा क्षेत्र के गांव में कल तक प्रवास करेंगे। इसके बाद 12 दिसंबर को सावड़ा में बुरायला जगथान की बागड़ी आयोजित होगी। 13 दिसंबर को हिमाचल में प्रवेश करेंगे देवता महाराज परसों यानी 13 दिसंबर को हिमाचल के सिरमौर में देवता महाराज प्रवेश करेंगे। सिरमौर के शिलाई क्षेत्र में न्याय के देवता चालदा महासू महाराज के स्वागत की जोरदार तैयारियां चल रही है। देवता के स्वागत को द्वार सजाए जा चुके है। धाम की तैयारियां जोरो पर है। देवस्थानों की सफाई और स्थानीय लोग देव नृत्य व गीतों की तैयारी में जुटे हैं। पश्मी गांव में विराजमान होंगे देवता चालदा महाराज के वजीर दीवान सिंह राणा के अनुसार, हिमाचल में प्रवेश के बाद 13 दिसंबर को देवता महाराज की यात्रा का पहला पड़ाव द्राबिल में होगा। 14 दिसंबर को मंत्रोच्चारण के साथ पश्मी मंदिर में देवता विराजमान होंगे। इससे पहले देवता महाराज द्राबिल, शिल्ला, बोकाला, खन्यार, नयां गांव, तिम्बी, पाब, पश्मी गांव प्रवास करेंगे। इन गांव में हजारों लोग अपने आराध्य के दर्शन करेंगे। कौन हैं चालदा महासू महाराज ? छत्रधारी चालदा महासू महाराज का इतिहास उत्तराखंड और हिमाचल के लोग देवता महासू से जुड़ा है। जो भगवान शिव के रूप में माने जाते हैं और लोक मान्यता के अनुसार, महासू देवता न्याय के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। महासू देवता जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के ईष्ट देव हैं। यह मंदिर 9वीं शताब्दी में बनाया गया था। वर्तमान में यह मंदिर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के संरक्षण में है। किवदंती है कि महासू देवता का मंदिर जिस गांव में बना है उस गांव का नाम हुना भट्ट ब्राह्मण के नाम पर रखा गया है। इससे पहले यह जगह चकरपुर के रूप में जानी जाती थी। पांडव लाक्षा ग्रह( लाख का महल) से निकलकर यहां आए थे। हनोल का मंदिर लोगों के लिए तीर्थ स्थान के रूप में भी जाना जाता है। महासू देवता से संबंधित कहानी के बारे में बहुत ही कम लोग जानते है। महासू देवता न्याय के देवता है, जो उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र से सम्बन्ध रखते है। महासू देवता चार देव भाइयों में शामिल है- बोठा महासू, पबासिक महासू, बसिक महासू और चालदा महासू शामिल है। भगवान शिव ने दिलाई राक्षस से मुक्ति जनजाती क्षेत्र जौनसार-बावर के ग्राम हनोल स्थित तमसा (टौंस) नदी किनारे श्री महासू देवता का मंदिर वास्तुकला के नागर शैली में बना है। पौराणिक कथा के अनुसार, किरमिक नामक राक्षस के आंतक से क्षेत्रवासियों को छुटकारा दिलाने के लिए हुणाभाट नामक ब्राह्मण ने भगवान शिव और शक्ति की पूजा/तपस्या की। भगवान शिव और शक्ति के प्रसन्न होने पर मैट्रेथ हनोल में चार भाई महासू की उत्पत्ति हुई और महासू देवता ने किरमिक राक्षस का वध कर क्षेत्रीय जनता को इस राक्षस के आंतक से मुक्ति दिलाई, तभी से लोगो ने महासू देवता को अपना कुल आराध्य देवता माना और पूजा अर्चना शुरू की। बोठा महासू , बाशिक, पवासी एवं चालदा चार महासू भाई है। बोठा महासू देवता का मुख्य मंदिर हनोल में है, बोठा महासू को न्याय का देवता कहा जाता है। उनका निर्णय स्थानीय लोगो में सर्वमान्य होता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार महासू मंदिर हनोल में 9 वीं से 10 वीं शताब्दी का बताया गया है। छत्रधारी चालदा महासू महाराज 4 महासू भाइयों में सबसे छोटे देवता माने जाते हैं। वे किसी एक स्थान पर लंबे समय तक नहीं रुकते, बल्कि क्षेत्र-क्षेत्र घूमकर अपने भक्तों के दुख दूर करने की परंपरा निभाते हैं। अपने भाइयों द्वारा प्रदान किया गया दिव्य छत्र उनका मुख्य पहचान चिह्न है, जो देव डोली के साथ चलता है।