हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े सहकारी बैंक, कांगड़ा सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक (केसीसी) पर प्रशासनिक और वित्तीय अस्थिरता के आरोप लगे हैं। 105 साल पुराने इस बैंक के बोर्ड को निलंबित कर दिया गया है और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जांच शुरू कर दी है। इन घटनाक्रमों से बैंक की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। बैंक को पिछले कुछ महीनों से स्थायी प्रबंध निदेशक (एमडी) नहीं मिल पाया है। हाल ही में 2017 बैच के आईएएस अधिकारी जफर इकबाल ने कार्यवाहक एमडी का पदभार संभाला है। इससे पहले संदीप कुमार और आदित्य नेगी भी इस पद पर रह चुके हैं। लगातार नेतृत्व परिवर्तन के कारण बैंक की नीतिगत निर्णय और ऋण वसूली प्रक्रिया प्रभावित हुई है। ईडी की जांच से लगा झटका बैंक को सबसे बड़ा झटका ईडी की जांच से लगा है। ईडी ने बैंक की विवादित वन-टाइम सेटलमेंट (ओटीएस) योजना से संबंधित सभी दस्तावेज मांगे हैं। इस योजना के तहत 5,461 एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) खातों का लगभग ₹198 करोड़ में समाधान किया गया था। इसमें से करीब ₹185 करोड़ माफ कर दिए गए, जबकि बैंक को केवल ₹112 करोड़ ही वापस मिल पाए। निदेशक मंडल बोर्ड को भी किया गया था निलंबित वित्तीय अनियमितताओं को लेकर नाबार्ड की एक रिपोर्ट सामने आने के बाद सरकार ने कार्रवाई की। 12 सितंबर को बैंक के निदेशक मंडल (बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स) को निलंबित कर दिया गया। धर्मशाला के मंडलीय आयुक्त विनोद कुमार को तत्काल प्रभाव से प्रशासक नियुक्त किया गया है। इसके चलते 28 सितंबर को होने वाले बोर्ड चुनाव भी स्थगित कर दिए गए हैं। नए एमडी जफर इकबाल के सामने ‘चुनौतियों का पहाड़’ नए कार्यवाहक एमडी जफर इकबाल के सामने फिलहाल ‘चुनौतियों का पहाड़’ है। उनकी प्राथमिकताएं साफ हैं, खाताधारकों और हितधारकों का विश्वास दोबारा जीतना। सेवा और तकनीकी अपग्रेडेशन, बैंकिंग सेवाओं में सुधार और तकनीकी उन्नयन लाना। इसके साथ ही सेवा नियमों का सख्ती से पालन और एनपीए में कमी लाना। बैंक की लाभ को बरकरार रखते हुए इस संकट से उबारना ही अब उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी बन गई है। सभी की निगाहें अब उनके अगले कदमों पर टिकी हैं।